वांछित मन्त्र चुनें

क॒विर्न नि॒ण्यं वि॒दथा॑नि॒ साध॒न्वृषा॒ यत्सेकं॑ विपिपा॒नो अर्चा॑त्। दि॒व इ॒त्था जी॑जनत्स॒प्त का॒रूनह्ना॑ चिच्चक्रुर्व॒युना॑ गृ॒णन्तः॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kavir na niṇyaṁ vidathāni sādhan vṛṣā yat sekaṁ vipipāno arcāt | diva itthā jījanat sapta kārūn ahnā cic cakrur vayunā gṛṇantaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒विः। न। नि॒ण्यम्। वि॒दथा॑नि। साध॑न्। वृषा॑। यत्। सेक॑म्। वि॒ऽपि॒पा॒नः। अर्चा॑त्। दि॒वः। इ॒त्था। जी॒ज॒न॒त्। स॒प्त। का॒रून्। अह्ना॑। चि॒त्। च॒क्रुः॒। व॒युना॑। गृ॒णन्तः॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:16» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गृणन्तः) स्तुति और उपदेश करते हुए विद्वान् जन (अह्ना) दिन से (वयुना) प्रज्ञानों को (चक्रुः) करते हैं और (सप्त) सात (कारून्) कारीगर जनों को (चित्) भी करते हैं (इत्था) इस प्रकार से (यत्) जो (वृषा) बलिष्ठ (सेकम्) सिञ्चन की (विपिपानः) विशेष करके रक्षा और (विदथानि) जानने के योग्यों को (साधन्) सिद्ध करता हुआ (दिवः) प्रकाशों का (अर्चात्) सत्कार करे, वह (निण्यम्) निश्चित प्रकाशों को (कविः) विद्वान् के (न) सदृश (जीजनत्) उत्पन्न करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो जन विद्या और पुरुषार्थ को बढ़ाते हैं, वे सात प्रकार के कारीगरों को करके सब कार्य्यों को सिद्ध करा कामसिद्धि कर सकें ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

गृणन्तो विद्वांसोऽह्ना वयुना चक्रुः सप्त कारूञ्चिच्चक्रुरित्था यद्यो वृषा सेकं विपिपानो विदथानि साधन् दिवोऽर्चात् स निण्यं दिवः कविर्न जीजनत् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कविः) विद्वान् (न) इव (निण्यम्) निश्चितम् (विदथानि) विज्ञातव्यानि (साधन्) साध्नुवन् (वृषा) बलिष्ठः (यत्) यः (सेकम्) सिञ्चनम् (विपिपानः) विशेषेण रक्षन् (अर्चात्) सत्कुर्य्यात् (दिवः) प्रकाशान् (इत्था) अनेन प्रकारेण (जीजनत्) जनयति (सप्त) (कारून्) शिल्पिनः (अह्ना) दिवसेन (चित्) (चक्रुः) कुर्वन्ति (वयुना) प्रज्ञानानि (गृणन्तः) स्तुवन्त उपदिशन्तः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये जना विद्यापुरुषार्थौ वर्धयन्ति ते सप्तविधाञ्छिल्पविदुषः कृत्वा सर्वाणि कार्य्याणि साधयित्वा कामसिद्धिं कर्त्तुं शक्नुयुः ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे लोक विद्या व पुरुषार्थ वाढवितात ते सात प्रकारच्या शिल्पविद्येने सर्व कार्य सिद्ध करून कामसिद्धी करू शकतात. ॥ ३ ॥